तत्वदर्शी महात्मा मेहर बाबा
कहते हैं ईश्वर की लीला ईश्वर ही जाने। भारत महापुरुषों का देश है। महापुरुष वह नहीं जो अपने आप को महापुरुष कहता हो।
वास्तविक महापुरुष तो वही है, जिसे समाज ने महापुरुष माना। सिद्ध शब्द बहुत ही विस्तार वाला है। रहस्य शब्द हीं अपने आप में एक रहस्य।
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Image source - Mehar Baba trust |
जब ऐसे शब्द किसी नाम के पीछे जूड़ते हैं, तो इसके पीछे भी अनेक महानता होता है। भारत के महामानव में आज चिंतन है "सिद्ध पुरुष अतुल्य तत्वदर्शी महामानव श्री मेहर बाबा जी" का।
भारत अपने आप में ! अपने संस्कृति को लेकर अतुलनीय देश है। इसी भारत की भूमि पर महाराष्ट्र प्रदेश के (वर्तमान काल में गुजरात को साथ में लेकर यह बंबई प्रदेश था) पुणे में मेहर बाबा का जन्म 25 फरवरी 1894 एक पारसी परिवार में हुआ।
मेहर बाबा जन्म से पारसी थे । उनके बचपन की पढ़ाई क्रिश्चियन हाई स्कूल, एवं डेक्कन कॉलेज पुणे में हुआ। मेहर बाबा का बचपन से ही अध्यात्म के प्रति बहुत लगाव था , वे अच्छे कवि होने के साथ-साथ एक अच्छे वक्ता भी रहे।
जब वह 19 वर्ष की हुए उस समय उनका मुलाकात एक रहस्य दर्शी महिला संत हजरत बाबा जान से हुई। उस मुलाकात के बाद मानो बाबा का जीवन पूरी तरह से बदल गया।
यहां और आगे बढ़ने से पहले एक बात कहना चाहूंगा। आज संसार में सभीं सिर्फ अच्छा और अच्छा चाहते हैं। आज के समय में बुरा किसी को नहीं चाहिए।
वास्तव में कहां जाए तो जो जिस लायक होता है ,वह स्वयं ही उस जगह पहुंच जाता है। मैं यह दृढ़ता से कहता हूं, कि वास्तव में व्यक्ति जो चाहता है ,उसे वही मिलता है।
संसार में कहावत है " एक राजा का जो ताज होता है , उस ताज पर किसी का नाम नहीं लिखा होता। और न राजा जिस कुर्सी पर बैठता है उस कुर्सी पर किसी का नाम लिखा होता है।
वास्तव में जिसका सर उस ताज के लायक हो जाता है ,वह ताज अपने आप ही उस सर पर चला जाता है। कुर्सी अपने लिए हमेशा ही योग्य ढूंढता है।"
बाबा का झुकाव अध्यात्म की तरफ था और वे अध्यात्म की तरफ आगे बढ़े। महामानव स्वयं के द्वारा निर्मित होता है। मेहर बाबा भी उस परमेश्वर के स्वरूप स्वयं के द्वारा निर्मित रहे।
मेहर बाबा ने 5 महत्वपूर्ण उस समय के महामानव को अपना गुरु माना। उनके 5 गुरु - नागपुर के हजरत ताजुद्दीन बाबा, खेत गांव के नारायण महाराज, शिर्डी के साईं बाबा, सकोरी के श्री उपासनी महाराज, एवं एक नाम हजरत बाबा जान हुए।
बाबाजी श्री उपसनी महाराज के पास 7 वर्षों तक कठिन अध्यात्म की शिक्षा ली। इसके पश्चात उन्होंने ईरानी अध्यात्म ग्रहण किया। कहते हैं ज्ञान छुपता नहीं है।
विशेष गुण अपने आप में प्रकाशमान होता है। मेहर बाबा का अध्यात्म प्रकाश अपना रंग दिखाने लगा। बाबा के भक्तों ने बाबा का नाम मेहर रख दिया। मेहर का अर्थ होता है दयालु पिता।
बाबा जी के ज्ञान के शब्द उनके अनेक पुस्तको द्वारा संसार में उपलब्ध है। उनके साहित्य शब्द अपने आप में परम खास हैं, और प्रचलित है।
बाबाजी के अंदर गजब का ज्ञान रहा। उनके शब्द आश्चर्य से भरे थे। उनके शब्दों से भक्तों के भ्रम सामने-सामने हीं दूर हो जाते रहे।
आज भी मेहर बाबा अपने शब्दों के जरिए अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं। जो वास्तव में बाबा जी को जानते हैं, जिन्होंने दर्शन किया उनका वह सभीं आज धन्य हैं ।
जो उन्हें जानकर और दर्शन का लाभ नहीं पा रहे हैं उन्हें अफसोस है। मेहर बाबा हमेंशा ही अपने भक्तों का कल्याण करते रहें और आगे भी सदैव अपने आशीर्वाद से सब का कल्याण करते रहेंगे
मेहर बाल विद्या मंदिर की संस्थापिका श्री मीणा पंत के द्वारा विशेष अनुभव
यह सभीं शब्द वास्तव में मैं कहूं तो मेरे नहीं है। क्योंकि बाबाजी के बारे में बहुत समय से सुन रखा था। परंतु प्रभावित मैं जब हुआ , जब उनके एक प्रिय शिष्य जो कि देहरादून में रहतीं हैं।
नाम है "श्री मीना पंत"। मैंने उनकें शब्दों को समझने की कोशिश किया तथा शब्दों के भावनाओं को आज अपने शब्दों में व्यक्त कर रहा हूं
श्री मीणा पंत जी जो कि स्वयं ही बाबा के आशीर्वाद से बाबा के ही नाम से एक स्कूल स्थापित कर संचालित कर रही हैं। उनका उम्र अंदाजन 70 के आसपास है। मैंने उनसे उम्र नहीं पूछा परंतु यहां बताना आवश्यक था
शब्दों के भावनाओं को समझने के लिए ! कहने वाले का अंदाज देखना होगा। मैं उनसे अनेक बार मिला, हर बार बाबा के बारे में कुछ न कुछ नया सुना
श्री मेहर बाबा के बारे में विशेष
आज के समय यदि विचार करें तो सभी अपने बातों को रखने के लिए अनेक प्रकार के अहम और हठ का प्रयोग करते हैं।
सभीं विशेषकर ऐसा लगता है कि अपनी बातों से दुनिया को जीत लेंगे। मैं यह शब्द उनके लिए नहीं कहा , जिनकों समाज ने प्रमाणित कर रखा है।
मेहर बाबा वह संत रहे जिन्होंने मात्र 29 वर्ष की आयु में अखंड मौन व्रत धारण किया।
मौन धारण करने के बाद भी वे संसार को वह सब देकर गए जो उनके भक्तों को चाहिए था।
मेहर बाबा का मौन! भक्तों में इतना प्रसिद्ध है कि आज भी हर 10 जुलाई को मेहर बाबा का मौन पर्व दिवस मनाया जाता है
आज डॉक्टर इस बात को मानते हैं कि व्यक्ति चलने से ज्यादा बोलने में अपना ऊर्जा खर्चा करता है।
वाणी का संयम अध्यात्म में बहुत हीं प्रमुख स्थान रखता है। आज भी कितने भक्त नित्य सुबह शाम 5 अथवा 10 मिनट के लिए मौन धारण करते हैं।
मौन व्रत का महत्व विशेषकर जैन संप्रदाय में देखने को मिलता है। सनातन भारत में मौन व्रत धारण करना! एक अलग महत्व है ।मौन व्रत अपने आप में सर्वोत्तम व्रत है।
आज यदि सांसारिक दृष्टि से देखें तो परिवार अथवा समाज में जितने भी झगड़े होते हैं, उस सब का मूल कारण वाणी का संयम न होना।
संसार में व्यक्ति को वाणी ही सम्मान दिलाता है और वाणी अपमान भी दिलाता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। यदि संभव हो नित्य दिन कुछ मिनट मौन व्रत धारण करना चाहिए।
आज भारत के अनेंक प्रदेश में मेहर बाबा का मंदिर मिलेगा। उनके भक्तों द्वारा समाज में किए जा रहे हैं सेवा देखने को मिलेंगा।
बाबा जी का एक मंदिर हमीरपुर जिले में, उनके प्रिय भक्त परमेश्वरी दयाल पुकर के द्वारा 1964 में हुआ।
आज हमीरपुर का यह मेहर बाबा मंदिर अपने आप में बहुत ही खास है। यहां प्रतिवर्ष 18 और 19 नवंबर को मेहर प्रेम मेले का आयोजन किया जाता है।
महाराष्ट्र के अहमदनगर के पास मेहराबाद में मेहर बाबा का विशाल आश्रम है। जो कि मेहर बाबा के भक्तों का केंद्र माना जाता है।
यहीं पर श्री मेहर बाबा की समाधि है। उनके आश्रम दिल्ली और मुंबई में भी मिलेगा, तथा देश के अनेंक स्थान में मिलेगा। मेहर बाबा का जीवन अपने आप में एक दर्शन स्थापित करता है।
वे अपने लिए प्रचार का हमेशा ही निषेध करते रहे। आज जो भी भक्त मेहर बाबा को मानते हैं, वे सभीं किसी न किसी प्रकार बाबा जी के जीवन से जुड़े हुए हैं। श्री मेहर बाबा रहस्य से भरे रहे।
आज भी वे अपने अनुयायियों के लिए साक्षात ईश्वर स्वरूप हैं। मेहर बाबा अपने भक्तों के लिए हमेशा ही खास रहें। उनके जीवन में हीं भक्तों ने उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया।
मैं नव वार्ता से मेहर बाबा के साथ-साथ उनके भक्तों को भी हार्दिक नमन करता हूं। कहते हैं भगवान भक्तों को समझते हैं। गुरु शिष्य को समझते हैं। एक भक्ति पुरुष दूसरे भक्त को समझता है।
वह भगवान सदैव महान है जिसने इस दुनिया को रचा है। वह महामानव महान हैं, जिसने उस परमेश्वर का आशीर्वाद पाकर जगत को आशीर्वाद दिया। जो जीवन पर्यंत सिर्फ और सिर्फ ईश्वर के लिए जिया।
उस भगवान को मानने वाला वह सब भक्त महान है, जिसने उस भगवान को भगवान समझकर नमन किया। उन भक्तों को सम्मान करने वाले भक्त बंधुओं को नमन है।
जिनके अंदर ईश्वर भक्तों के लिए प्रेम है। एक भक्त की भक्ति तो एक भक्त अथवा ईश्वर हीं भली-भांति समझता है।
ईश्वर महानतम है, ईश्वर का नाम महानतम है। ईश्वर के नाम से भक्त भी महानतम हो जाते हैं। यह भक्त के लिए ईश्वर का परम कृपा है।
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