कर्म फल का तुला
गरुड़ पुराण कर्म फल का तुला,गरुड़ पुराण में विशेष ,भारत की संस्कृति के ऊपर बहुत बड़ा उपकार,अंत समय गरुड़ पुराण पढ़ना, गरुड़ पुराण का महात्म्य
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कर्म फल का तुला |
मेरा शुरू से ही पुराण और ग्रंथ के कथाओं ऊपर उलझने का कभी विचार नहीं बना। क्योंकि हमारा मानना है की कथाओं में अनेक भेद होते हैं। कथाओं के ऊपर उठने वाले प्रश्न का कभी भी पूर्ण रूप से विराम नहीं लग सकता। मैं अपने विचार से इतना ही जानने कोशिश करते रहा हूं कि ये पुराण श्री महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा लिखा गया है।
जिस समय व्यास जी ने जिस उद्देश्य लिखा ।हमें उस उद्देश्य को लेना है। व्यास जी अपने रचना में संसार के लिए हमारे सनातन परिवार के लिए क्या देकर गए तथा श्री गरुड़ पुराण जी के माध्यम संसार को क्या देने का विचार था।हमें विशेष कर उस पर चिंतन करना चाहिए
वास्तव में सबको सिर्फ अपने भाव की फिक्र है
हमने आज के समय हीं कथाकारों के द्वारा एक दूसरे की कथाओं में अनेक मतभेद देखा है। और कथाओं के ऊपर एक दूसरे से उलझते हुए भी देखा है। इतिहास गवाह है व्यक्ति अपने मौत से बहुत डरता है। सब संसार में सिर्फ जीना ही चाह रहे हैं मरना कोई नहीं चाहता। मरना सत्य है यह भी सब जानते हैं।
एक बार यदि वृद्धावस्था आ गया तो इस प्रकृति में वापस युवावस्था नहीं मिल सकता। जब तक शरीर चलता है तब तक व्यक्ति अपने भोग का सामग्री अपने द्वारा इकट्ठा कर लेता है। परंतु जब शरीर चलने के लायक नहीं होता तो वह आशा करता है कि हमारे भोग की सामग्री कोई और इकट्ठा करके दे।
जबकि वास्तव में ऐसा कभी होता नहीं, इस संसार में सबको अपने भोग की चिंता है। यदि किसी के अंदर रोग लग गया तो उसे अपने रोग की चिंता है। संसार को दूसरे के न भोग की चिंता है और न रोग की चिंता है
श्री गरुड़ पुराण में विशेष क्या है?
इस पुराण में विशेष यह है कि शरीर अथवा संसार में ऐसा कोई वस्तु नहीं है जिससे व्यक्ति घृणा करे। दूसरा है व्यक्ति को अपने मौत से पहले अपने कर्म का सुधार करें। व्यक्ति को अपने चरित्र का सुधार कैसा किया जाए, व्यक्ति जब कुचरित्र से युक्त होता है तो उसे किस प्रकार का दंड मिल सकता है इसका जिक्र है।
पुरानी कहावत है यदि बबूल के पेड़ लगाए हैं तो निश्चित तौर पर उसमें से आम का फल नहीं आ सकता। पेड़ हमें पता है, बबूल का पेड़ है तो फल भी बबूल का ही आएगा। परंतु जीवन चरित्र में किसके अंदर कौन सा पेड़ लगा हुआ है वह व्यक्ति नहीं समझता। श्री गरुड़ पुराण यह दर्शाता है कि कौन से चरित्र के रूप में कौन सा पेड़ व्यक्ति के अंदर बड़ा हो रहा है।
व्यक्ति को पता ना हो कि जो बीज उसने बोया है वह बबूल का है। उसने मन में यह विचार बना रखा है की पेड़ बड़ा होगा और हम आम खाएंगे। जब उसमें से फल आता है तो वह आम के बजाए बबूल का फल आता है। वह समझ नहीं पाता कि ऐसा कैसे हो गया। आने वाला कल कोई नहीं जानता।
कर्म हर प्रकार से सुयोग हो यह तो मानव के लिए संस्कृति का सबसे बड़ा उपलब्धि है। श्री गरुड़ पुराण मनुष्य के मृत्यु के पश्चात कर्म के अनुसार क्या-क्या गति मिलता है इसका वर्णन करता है।
मृत्यु के उपरांत यदि परमेश्वर अथवा हम कहे प्रकृति यदि दंड देता है तो किस प्रकार से देता है इसका भली प्रकार जिक्र है। गरुड़ पुराण में अपने और पराए का बहुत ही विस्तार से वर्णन है। मृत्यु के बाद किसके लिए क्या कर्तव्य है इसका वर्णन है
सनातन धर्म के महात्माओं का भारत की संस्कृति के ऊपर बहुत बड़ा उपकार है वेद पुराण
हमारे सनातन महात्माओं ने जो वेद पुराण ग्रंथ उपस्थित किए हैं उनका उद्देश्य बहुत ही विशाल है। महात्मा जन कहते हैं अपने कर्म में सुधार लाओ।
वास्तव में व्यक्ति का भोग सब कुछ जानते हुए और समझते हुए भी अपने कर्म के ऊपर सोचने का मौका नहीं देता। व्यक्ति के अंदर मौत का डर ऐसा होता है कि वह अच्छा और बुरा सोचने के लिए मजबूर हो जाता है। गरुड़ जी का असीम कृपा गरुड़ पुराण सबके अनुसार से उत्तम मार्ग प्रशस्त करें।
जीवन में एक बार जरूर पुराने जरूर पढ़ना चाहिए क्यों?
श्री भगवान विष्णु इस पुराण के देवता कहे गए हैं और स्पष्ट जिक्र है कि भगवान शरीर के अंगों में कहां कहां उपस्थित है और किस रूप में उपस्थित हैं और क्या - क्या नाम है। शरीर के मांस ,हड्डी ,चमड़ा ,मूत्र और विष्ठा तक का जिक्र है।
इसका विस्तार अनेक प्रकार से किया गया अर्थात परमेश्वर हर जगह विराजमान है। युवावस्था में व्यक्ति अपना नित्य क्रिया आसानी से करता है, जैसे-जैसे वृद्धावस्था को प्राप्त होता है वैसे वैसे वह अपने नित्य क्रिया को करने में असक्षम होते जाता है।
उस समय संसार का कोई दवा काम में नहीं आता, कोई भी दवा युवावस्था को लौटा नहीं सकता। अंत समय में अपने यदि सेवा भी करते हैं तो ज्यादातर व्यक्ति के साथ ऐसा होता है कि सेवा से उसे संतुष्टि नहीं मिलता है। जैसे एक बच्चा अपना दर्द अपने मां तक को भी नहीं कह पाता वैसे ही वृद्धावस्था में व्यक्ति अपना दर्द समझा नहीं पाता।
अपना उसे समझ नहीं पाते ,कल वह समझेगा, इस आस में ,तमन्ना की प्यास में व्यक्ति दुनिया छोड़ चला जाता है। जिसने कर्म उत्तम किया हो वह हंसते हुए जाता और जिसने बुरा कर्म किया हो वह इस भय से बेचैन होकर जाता है कि पता नहीं जाने के बाद उसका क्या क्या होने वाला है।
अंत समय गरुड़ पुराण पढ़ना और समझना क्यों आवश्यक है?
भावना ही व्यक्ति का अपने द्वारा गढ़ा हुआ संसार है जिसे अंत समय कोशिश करने के बाद भी व्यक्ति निकल नहीं पाता।
वास्तव में यह संसार मन और भावना से बना है। भावना व्यक्ति का अपने द्वारा गढ़ा हुआ ,कभी ना टूटने वाला एक जाल है। श्री गरुड़ पुराण उसी भावना रूपी जाल को तोड़ने के लिए बहुत बड़ी औषधि है।
जो व्यक्ति अपनी मौत में जीवन की तलाश करें उसके लिए संजीवनी हैं। मेरे अपने अनुभव के अनुसार व्यक्ति को स्वस्थ स्थिति में अपने आप से एक बार गरुड़ पुराण का अध्ययन जरूर करना चाहिए।
कौन क्या कहता है ,समाज के अंदर कौन सा भ्रांतियां फैला हुआ है। इन सबसे अलग। मरने के बाद कौन सुनने के लिए आता है यह किसे पता। उससे अच्छा है की जीवित अवस्था में इस पुराण का अध्ययन कर लिया जाए। निश्चित तौर पर व्यक्ति जब इसका अध्ययन करेगा उससे आगे के जीवन में इस श्री गरुड़ पुराण का बहुत ही प्रभाव होगा। प्रकृति नियत के अनुसार व्यक्ति को सब कुछ देता है। यह श्री पुराण भी नियत के अनुसार निश्चित देगा।
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