श्रीमद्भागवतगीता भाग १/१
श्रीमद् भगवद् गीता हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। यह गीता महाभारत युद्ध के मध्य में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई संवाद को विविध धार्मिक और दार्शनिक मुद्दों पर आधारित है। गीता में धर्म, कर्म, भक्ति, और ज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उल्लेख है। यह ग्रंथ मनुष्य को उच्चतम धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है। गीता में धर्म, जीवन के उद्देश्य, संघर्ष, और समाधान के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। यह ग्रंथ हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक है, जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करता है।
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श्रीमद्भागवतगीता भाग १/१ |
श्रीमद्भागवतगीता अध्याय 1 पहला श्लोक, श्रीमद्भागवत गीता क्यों,श्रीमद्भागवत गीता को वास्तव में किसने कहा,महाभारत युद्ध वास्तव में किसने लड़ा,महाभारत युद्ध का मुख्य कारण क्या था?
श्रीमद्भागवतगीता के बारे में कितना भी कहा जाए कम है । यहां तक कि कितना भी समझ लिया जाए वह भी कम है। महानुभाव-मित्रों! इससे पहले श्रीमद्भागवत गीता क्यों? श्रीमद्भागवत गीता के महत्व संक्षेप में मैंने कहने की कोशिश किया है।
अब हम गीता जी के अंदर विशेष विशेष श्लोकों के ऊपर लिखने की कोशिश करेंगे।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥ भावार्थ-
धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?॥1
श्रीमद्भागवत गीता क्यों?
श्रीमद्भागवत गीता को समझने के लिए गीता जी के पहले अध्याय का पहला श्लोक के ऊपर चिंतन निश्चित ही आवश्यक है। यह श्लोक वास्तव में गीता जी का श्लोक नहीं है।
यह श्लोक गीता जी के लिए आवश्यक है। पहले के इस लोक में न श्री कृष्ण है, और न हीं अर्जुन है। यह पहला श्लोक वास्तव में गीता जी के जन्म लेने की भूमि है।
गीता जी के लिए एक कथा प्रचलित है, कहते हैं जब व्यास जी ने महाभारत रूपी हरिवंश पुराण की रचना की, जो कि हर प्रकार से उत्तम था, उसके बावजूद परमेश्वर की प्रेरणा के अनुरूप उन्हें पुराण पूर्णंतया नहीं लगा।
चुकी व्यास जी महाभारत होने से पहले से यह सब जानते थे, उन्होंने एक ऐसी वार्ता का उल्लेख किया, जो हर प्रकार से गुप्त था। सभी घटनाओं का व्यास जी ने देखा भी था और सुना भी था।
धृतराष्ट्र अंधे थे इसलिए संजय से सुने थे। श्री अर्जुन गीता जी के ग्रहण करता थे। और कोई उपदेशक था तो स्वयं परम शक्ति परमेश्वर थे।
मैं बार-बार कहता हूं, गीता जी के उपदेशक कृष्ण नहीं थे, नहीं भगवान विष्णु थे। क्योंकि श्री गीता जी को कृष्ण में अथवा श्री विष्णु में बांधना श्रीमद्भागवत गीता को छोटा करना हो जाएगा, या फिर समझना मुश्किल होगा।
श्रीमद्भागवत गीता को वास्तव में किसने कहा?
यह बात पहले समझना होगा। यदि ये श्री कृष्ण की वाणी कहा जाए, तो गीता जी को संजय की वाणी भी कहा जा सकता है, और श्री व्यास जी की वाणी भी कहा जा सकता है।
श्री कृष्ण जी! श्री मद्भागवतगीता को, एक तीसरे पुरुष बनकर कहते हैं। इसका जिक्र उन्होंने एक बार नहीं अनेक बार कहा है, अर्जुन से पहले भी अर्जुन था, और कृष्ण से पहले भी कृष्ण थे। इसका विस्तार परमेश्वर ने अपनी विभूतियों में किया है।
अपनी विभूतियों में अपने अनंत रूपों की व्याख्या उन्होंने किया है । उन व्याख्या में श्री अर्जुन और श्री कृष्ण एक बहुत ही छोटा स्वरूप है। श्री कृष्ण वास्तव में श्री कृष्ण ने नहीं थे, क्योंकि परमेश्वर ने हीं इसमें कहा है, जो मुझे सिर्फ कृष्ण रूप से जानता है, वह वास्तव में मुझे नहीं जानता। परमेश्वर ने अपने वास्तविक स्वरूप को, विराट स्वरूप में दर्शाया है। इस रहस्य को भली भाती श्री अर्जुन समझे !
जब तक श्रीमद्भागवत गीता के प्राकट्य रुपी जमीन और भूमिका समझ में ना आए, तो श्री गीता जी को समझना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है। उदाहरण के तौर पर भेद अपनी आंखों में नहीं होता, भेद दृश्य में होता है।
हम यह कभी नहीं कह सकते कि हमारा शब्द ही महान है। आज तक अतीत में जितने भी ज्ञान को प्रदर्शित करने वाले, महामानव हुए शायद उनके समक्ष मैं बहुत छोटा हूं।
सभीं ने अपने अपने तरीके से श्रीमद्भागवत गीता के व्याख्यान दिए। सभी का अपना अपना महत्व है। वास्तव में यदि बात करें तो श्रीमद्भागवत गीता सिर्फ ज्ञान नहीं है, ज्ञान को प्राप्त करने की कुंजी है।
परमेश्वर और जीव के बीच जो दूरी है, उस दूरी को मिटाने के लिए, जिस प्रकार के योग क्रिया की आवश्यकता है, उसका कुंजी है।
महाभारत युद्ध वास्तव में किसने लड़ा?
सभी अपने परंपरा को फॉलो करते हैं, यदि करीब से देखें तो हंसी आएगा, जिस परंपरा को फॉलो कर कोई बहुत बड़ा परंपरा बना, लोगों ने उस मुख्य परंपरा को भुला दिया। या यूं कह सकते हैं सामाजिक विचारधारा इतना हावी हो गया, की मूल विचारधारा कहीं दूर हो गया।
गीता जी के शुभारंभ में धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं हे संजय, धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया?
यह शब्द किसके थे, हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के थे।
धृतराष्ट्र को भी पता था, किया धर्म की लड़ाई है। पांडव अपने धर्म को निभाने के लिए युद्ध भूमि में आए हुए थे। इधर से दुर्योधन भी अपने धर्म को ही देखते हुए युद्ध के लिए तैयार हुआ था।
धृतराष्ट्र अंधा होते हुए भी मन की आंखों से, युद्ध भूमि में गया था। वह यह सोच कर नहीं गया था, कि वह अधर्म कर रहा है। वास्तव में धृतराष्ट्र के लिए धर्म शब्द यह दर्शाता है, कि धृतराष्ट्र को पुत्र मोह रूपी कामना ने उसे मन और बुद्धि से भी अंधा कर दिया था।
यहां धृतराष्ट्र कहता है ''युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने''
जबकि यह सत्य है, धृतराष्ट्र अपने मन बुद्धि से स्वयं कुरुक्षेत्र में मौजूद था , वास्तव में कौरव और पांडवों को युद्ध की इच्छा नहीं थी, युद्ध की इच्छा तो धृतराष्ट्र की थी। इस दृष्टि से देखे तो वास्तव में महाभारत युद्ध दोनों तरफ से ही लड़ने वाला धृतराष्ट्र था।
महाभारत युद्ध का मुख्य कारण क्या था?
महाभारत युद्ध का कारण द्रोपदी अथवा दुर्योधन नहीं था। यह सभीं तो राजा के महत्वाकांक्षा रूपी शतरंज के मोहरे थे।
धृतराष्ट्र पुत्र मोह में था। साथ अजत राष्ट्र अपने जीवन में अंदर दबे पराक्रम को नहीं दिखा पाया था। उसने अपने पुत्र के जरिए अपने पराक्रम को दिखाने का अवसर खोजा। धृतराष्ट्र आंखों से अंधा था साथ में उससे भी ज्यादा वह महत्वाकांक्षा में अंधा था।
महत्वाकांक्षा में वह इतना अंधा था की राजधानी में रहकर वह कुरुक्षेत्र में दोनों तरफ से लड़ा। धृतराष्ट्र राजा थे वे यदि चाहते तो युद्ध को आखरी दिन तक रुक सकते थे। इस बात को गंधारी बार-बार बोलती रही।
महाभारत को धर्म की लड़ाई ऐसे ही नहीं कहा जाता। पांडव हस्तिनापुर को छोड़कर समस्त विश्व को जीत सकते थे। परंतु हर तरफ उन्होंने मित्रता का भाव रखा।
पांडवों ने श्री कृष्ण के माध्यम से सिर्फ अपने लिए पांच गांव मांगा था। जो राजा पूरे राज्य प्रशासन करता था वो अपने महत्वाकांक्षा के ऊपर शासन नहीं कर पाया। जो राजा अपने राज्य के एक नागरिक के ऊपर राज़ करता था वह अपने पुत्र के ऊपर राज़ नहीं कर पाया।
कभी भी अपने आप को दोष नहीं देता, यह सभी जानते हैं, दुर्योधन एक राजा का बेटा था, उसका इच्छा उसके पिता का सोच था,वह अपने पिता के साथ हुए अन्याय के लिए लड़ रहा था। युद्ध की इच्छा पांडवों को भी नहीं थी, वे तो कौरवों की इच्छा से युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र में उपस्थित हुए थे।
श्रीमद् भागवत गीता की समझ में आवश्यकता क्यों और गीता की जरूरत क्या
श्रीमद् भगवद् गीता की समझ में आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह ग्रंथ मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा और अद्वितीय विचार करता है। गीता में व्यक्त किए गए शिक्षाओं और सिद्धांतों का अध्ययन करने से मानव जीवन में उच्चतम धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
गीता की जरूरत इसलिए है क्योंकि यह ग्रंथ मनुष्य को उसके असली धार्मिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। इसके माध्यम से हम अपने धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों को समझते हैं, और सही और संतुलित जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। गीता मानवता के मूल्यों को उच्च करने, समस्याओं का सामना करने, और सही निर्णय लेने में हमारी मदद करती है। इसके माध्यम से हम अपने जीवन को संतुष्ट, सकारात्मक, और सार्थक बनाने के लिए प्रेरित होते हैं।
साथ ही प्रकृति में सभीं जीव और समुदाय का अपना एक विशेष महत्व है और सबका सदैव सम्मान होना चाहिए। ईश्वर के लिए सभीं बराबर हैं और यह दुनिया सब का है।
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