नमस्ते का रिवाज
नमस्ते ! प्रणाम! ।
प्राचीन भारत में नमस्ते से भी प्रथम दंडवत प्रणाम करने का रिवाज रहा। हाथ जोड़कर करबद्ध प्रार्थना करने का रिवाज रहा। आज भारतीय संस्कृति में अनेक नमस्ते स्वरूप नमस्ते चलन में है। जो भारत के प्राचीन संस्कृति को प्रदर्शित करता है।
पश्चिमी सभ्यता से हाथ मिलाने का रिवाज आया। कुछ समय यह बहुत प्रभाव में था परंतु कोरोना के बाद लोगों को समझ में आया। करबद्ध प्रार्थना सदैव के लिए और सबके लिए उत्तम है। अपने प्राचीन संस्कृति से संबंधित प्रार्थना दिल के जरिए दिल तक पहुंचने का सरल भाषा है।
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नमस्ते का रिवाज |
प्रणाम! ही क्यों करना ?
भारत में प्रणाम की भाषा सबको समझ में आता है। हाथ मिलाना नया रिवाज है। हाथ मिलाकर जल्दी किसी के दिल के करीब पहुंचा नहीं जा सकता। परंतु दंडवत और करबद्ध प्रार्थना सामने वाले के दिल के अंदर प्रभाव डालता है।
संक्षेप में कहे तो भारत में साधु परंपरा में आज भी दंडवत प्रार्थना प्रचलित है। भारत के घर-घर में पैर छूकर प्रार्थना करने की परंपरा है। परंतु भारत के ग्रामीण एरिया में हाथ मिला कर दिल तक पहुंचने का रिवाज नहीं है।
प्रणाम इसलिए करना कि भारत में प्रणाम की भाषा सब समझते हैं। हाथ मिलाने की भाषा कोई-कोई समझता है। कोरोना काल में तो अनेक समय तक लोग हाथ मिलाना तो भूल ही गए थे। सीधे तौर पर कहा जाए तो भारत की प्राचीन परंपरा दिल से दिल तक पहुंचता है।
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